रात

रात के काले साये तले,
चाँद की तरह छत पर आती हो,
चुगली करती हो हवाओं से,
संग सितारों के गुनगुनाती हो,
छत के गमले, फूल, पत्तियाँ,
सबको खूब हसांती हो,
बहुत दूर दूर से आते हैं मिलने,
तुम जुगनुओं को बहुत रिझाती हो,
बात करते हुए फूलों से,
तुम दुपट्टा क्यों चबाती हो,
खो जाती हो यूँ ही किसी सोच मे,
अचानक से यूँ ही फिर मुस्कुराती हो,
आज़ाद एक परिंदे की तरह,
खुले आसमान मे नाचती हो गाती हो,
करो यकीन मेरा की वक़्त थम जाता है,
चांदनी में जब तुम घूँघट हटाती हो,
मै खिड़की से अकसर तुम्हे देखता रहता हूंँ।

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