भेड़ चाल

एक झुंड था भेड़ों का। बड़े से पहाड़ पे रहता था। सभी भेड़ उस पहाड़ के लगे मैदान मे घूमते, चरते और वापस अपनी जगह पे सो जाते। बड़े खुशहाल लगते थे।

एक दिन मैदान मे एक युवा भेड़ दूर एक खूबसूरत पहाड़ की और टकटकी लगाए देख रहा था। ‘ क्या देख रहे हो तबसे उधर ‘ एक भेड़ ने आ कर उससे पूछा। वो बोला, ” कल रात मैने सपने मे देखा की मै वो सामने वाले पहाड़ पे जा रहा हूँ। रास्ता थोड़ा कठिन था पर उस पहाड़ के पीछे इससे भी बड़ा और सुंदर मैदान था। सोच रहा हूँ क्या सचमुच ऐसा है “। दूसरा भेड़ सोचता हुआ बोला, “मैने अपने दादाजी से सुना था की उसके पीछे एक भयानक जंगल है और वहाँ बहुत सारे जंगली जानवर भी रहते है”। “अच्छा मतलब तुम्हारे दादाजी वहाँ गए है?” पहले भेड़ ने पूछा। “नही मगर उन्होंने ऐसा अपने दादाजी से सुना था, खैर चलो वापस चलते है”, भेड़ बोला और दोनो वापस चल दिये।


अगले दिन उस युवा भेड़ का मन चरने मे नही लग रहा था। बार-बार उसका ध्यान उसी पहाड़ की तरफ जा रहा था। वो अपने साथी के पास गया और बोला, “क्या लगता है तुम्हे उस पहाड़ के पीछे सच मे जंगल है या मैदान”? “तुम अभी भी उसी पहाड़ के पीछे पड़े हो, मुझे क्या पता उसके पीछे क्या है क्या नहीं। मुझे ये पता है की ये मैदान है, यहीं हम सब रहते हैं, खाते है, और यहीं हमारा परिवार है। उस पार देखना ही क्यों?” ये कह के वो भेड़ अपना चरने मे लग गया।  शाम को जब सब भेड़ वापस जाने लगे तो युवा भेड़ सबसे पीछे चल रहा था। धीरे धीरे, उसे अपने घर जाते हुए ऐसा लग रहा था जैसे वो घर से दूर जा रहा हो। बार बार वो पहाड़ की तरफ देखता और फिर अपने झुंड की तरफ और फिर नज़र झुका कर चल देता पीछे-पीछे।भेड़ को रात भर नींद तो नही आई पर उस पहाड़ का सपना जरूर आया। उसने निश्चय किया की अगले दिन वो आगे की तरफ बढ़ के देखेगा।

अगले दिन युवा भेड़ अपने झुंड से नज़र बचा कर चरने का बहाना करते हुए रोज़ की जगह से आगे बढ़ने लगा। तभी उसे पीछे से एक आवाज़ आई, “सपना फिर से आया क्या”? उसने पीछे देखा तो झुंड के एक बुजुर्ग भेड़ उसके पीछे खड़े थे। जब एक छोटा सा बच्चा कोई शैतानी कर रहा हो और वो देखे की पीछे उसकी माँ खड़ी है तो वह दो मिनिट के लिए समझ नही पाता की वो क्या करे, भाग जाए, शैतानी पूरी करे या फिर रोने लगे। उसी तरह युवा भेड़ भी सोचने लगा की वो करे तो करे क्या। बुजुर्ग भेड़ उसके पास आये और बोले, “आओ थोड़ा आगे चलते हैं “। युवा भेड़ सर झुका के उनके पीछे चल दिया।

दोनो भेड़ चुपचाप मैदान के किनारे तक चले। बुजुर्ग भेड़ ने लंबी सांस ली और बोले, “हमेशा याद रखना की तुम भेड़ हो, यही पहचान है तुम्हारी, यही अस्तित्व है तुम्हारा, तुम्हे सपने भी भेड़ों वाले देखने चाहिए। ये पहाड़ वो पहाड़ ये सब चिड़ियों के सपने हैं, तुम्हे शोभा नही देते”। युवा भेड़ सर झुकाए उनकी बात सुन रहा था। “मुझे नही पता उस पहाड़ के पीछे क्या है जंगल, मैदान, नदी या गाँव। पर मुझे ये पता है यहाँ क्या है। ये मैदान, ये झुंड ही हमारा संसार है, हमारा जीवन उद्देश्य है की हम इस संसार की नीति और परंपरा को बनाऐ रखे, उसका पालन करें। “

बुजुर्ग भेड़ पीछे मुड़े और देखा की युवा भेड़ सर झुकाए सब सुन रहा है। वो वापस चलने लगे। दो कदम के बाद रुके और बोले, “जैसा सब करते आये हैं, ठीक वैसा करना ही भेड़ चाल है”। बुजुर्ग भेड़ अपनी धीमी चाल से वापस झुंड की तरफ चल दिये। युवा भेड़ ने थोड़ी देर बाद सर उठाया सामने पहाड़ की ओर देखा और सर झुका कर बुजुर्ग भेड़ के पीछे चल दिया।

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