एक सुबह है अंधेरे सी,
पत्तों से पिघल रहे आंसू,
बर्फीली हवाओं से बचती बचाती,
साये में गुजरती जिंदगी।
एक शाम है धुंधली सी,
मौसम जैसे इश्क़ उजड़ा हुआ,
किनारे फैले ज़ख्मो के घाव सारे,
दर्द की एक बहती नदी।
एक रात है गूंजते सन्नाटो सी,
सपनो की घुटी हुई आवाज़ें,
वास्तविकता के जंगल मे गुम हो गयीं,
राहें थी जो मंज़िल की।
एक सूरज आया फिर नया,
मौसम में भी बहार सी आयी,
पत्तो को चीरकर जमीन को छुआ रोशनी ने,
धड़कनो में फिर जगा सोया हुआ हौंसला।
Advertisements